क्यों है भाद्रपद की गणेश चतुर्थी इतनी खास?
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी से गणेशोत्सव प्रारंभ होगा, जो कि 10 दिन तक चलता है. 10 दिन बाद गणेश विसर्जन के साथ इस उत्सव का समापन होता है.
गणेश विसर्जन 2024: सावन मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के त्यौहार के समापन से ही भाद्रपद मास की शुरुआत हो जाती है, इस वर्ष 20 अगस्त से भाद्रपद कृष्ण पक्ष की शुरुआत हो रही है. ज्येातिषाचार्य पंडित शशिशेखर त्रिपाठी कहते हैं कि भाद्रपद माह के आते ही प्राणी गणेशमय हो जाते हैं क्योंकि गणेश उत्सव का पर्व इस माह में मनाया जाता है. व्रत, पर्व और उत्सव की दृष्टि से यह माह और भी खास हो जाता है क्योंकि श्री कृष्ण जन्माष्टमी, जया एकादशी, हरियाली तीज, श्री गणेश चतुर्थी व्रत, राधा अष्टमी, पदमा एकादशी, अनंत चतुर्दशी, विश्वकर्मा पूजा जैसे कई प्रमुख पर्व इस माह में पड़ते हैं. जो भी प्राणी सच्चे मन से बप्पा की पूजा करता है, बप्पा उसके सभी विघ्नों को हर कर कार्य सिद्ध कराते है इसलिए उन्हें विघ्न विनाशक भी कहा जाता है.
गणेश चतुर्थी का महत्व
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन भगवान शिव ने भगवान गणेश को पुनर्जीवित किया था, जिसे गणेश चतुर्थी उत्सव के रूप में मनाया जाता है. वहीं दूसरी तरफ ऐसी मान्यता भी है कि भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को ही भगवान गणेश ने महाग्रंथ महाभारत को लिखना आरंभ किया था, इसलिए इस दिन को गणेश पर्व के रूप में मनाया जाता है.
क्या करें इस विशेष दिन पर
गणेश पूजन के बिना कोई भी जप-तप, अनुष्ठान आदि कर्म पूर्ण नहीं हो सकता है. पूर्व दिशा या उत्तर में चौकी पर पीला कपड़ा बिछा कर गणेश प्रतिमा की स्थापना करें. मां पार्वती की मूर्ति एक दिन पूर्व और श्री गणेश जी की मूर्ति उसी दिन प्रातः लाएं. श्री गणेश जी के नीचे पीले अक्षत से स्वास्तिक बनाएं. चौकी के चारों कोनों में केले के स्तंभ रखें. श्री गणेश जी के बायीं ओर मां पार्वती की स्थापना करें. श्री गणेश जी के दायीं ओर दो कलश (एक रुद्र, एक वरुण) स्थापित करें. पूजा- स्थल को अल्पना, रंगोली, बन्दनवार, आदि से सजाएं. पंचामृत, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप दीप, नैवेद्य फल आदि से विधि पूर्वक पूजन करें. प्रतिदिन 21 मोदक का भोग लगाएं
मनोकामना पूर्ति के लिए करें यह काम
आपकी जो भी इच्छा है, उसे प्रतिदिन घर लाई गणेश प्रतिमा के कानों में कहते रहे. फिर अंत में भगवान की इस मूर्ति को चतुर्दशी के दिन बहते जल, नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित कर दे. ताकि भगवान गणपति देवलोक जा सके और देवलोक के विभिन्न देवताओं को भूलोक के लोगों द्वारा की गई प्रार्थनाएं बता कर लोगों की इच्छापूर्ति करा सकें.