आखिर क्यों भारत में 25-49 साल की महिलाओं में 4.8% का निकाला जा चुका है गर्भाशय?

भारतीय महिलाओं की सेहत अच्छी है या बुरी इसका निर्धारण सोशियो इकॉनिक फैक्टर्स काफी हद तक तय करता है, अगर बिना किसी ठोस कारण के गर्भाशय निकाला जाता है, तो ये चिंताजनक है.

फिलहाल हमारे देश में वूमेन हेल्थ की क्या कंडीशन है, इसका पता एक स्टडी में सामने आया है. हाल ही में जर्नल ऑफ़ मेडिकल एविडेंस में छपे एक अध्ययन से पता चलता है कि 25 से 49 साल की भारतीय महिलाओं में से 4.8% का गर्भाशय निकाला जा चुका है, जिसमें कृषि श्रमिकों में सबसे अधिक 6.8% प्रसार देखा गया है.

ग्रामीण महिलाएं ज्यादा प्रभावित
ये चिंताजनक प्रवृत्ति सामाजिक-आर्थिक और व्यावसायिक असमानताओं को उजागर करती है, कृषि मजदूरों के लिए खास तौर से कड़ी मेहनत और कीटनाशक के संपर्क में आने के कारण ऐसा हो रहा कई महिलाएं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में या सीमित शिक्षा वाली, कम आक्रामक विकल्पों के ज्ञान के बिना गर्भाशय निकलवाती (Hysterectomy) हैं, अक्सर हद से ज्यादा मेंस्ट्रुअल ब्लीडिंग (55.4%), फाइब्रॉएड (19.6%), या यूटेराइन (13.9%) जैसी स्थितियों का समाधान करने के लिए होता है.

बिना ठोस वजह के सर्जरी
इस स्टडी में अहम क्षेत्रीय विविधताएं सामने आई हैं, दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में क्रमशः 12.6% और 11.1% की उच्चतम प्रसार दर दर्ज की गई है, जबकि असम में सिर्फ 1.4% है. इसके अलावा, इन सर्जरी में से 67.5% निजी स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में आयोजित की जाती हैं, जिससे मुनाफे के लिए कमजोर महिलाओं के शोषण के बारे में नैतिक चिंताएं पैदा होती हैं. सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाएं, जिनका मकसद हेल्थ केयक तक पहुंच में सुधार करना है, कथित तौर पर बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्यों में दुरुपयोग की जाती हैं, जिससे अनावश्यक सर्जरी होती हैं.

सामाजिक-आर्थिक कारण
सोशियो-इकॉनमिक फैक्टर इसमें एक अहम रोल अदा करते हैं. ग्रामीण महिलाओं में शहरी महिलाओं की तुलना में 30% अधिक गर्भाशय निकलवाने  (Hysterectomy) की संभावना होती है. शिक्षा भी इस प्रवृत्ति को प्रभावित करती है, क्योंकि कम शिक्षा स्तर वाली महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं, जबकि अमीर लेकिन कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए प्रोसीजर को अफोर्ड करने की अधिक संभावना होती है. उम्र और समानता चीजों को निर्धारित करती हैं, 40-49 सा की महिलाओं और 3 या ज्यादा बच्चों वाली महिलाओं को अधिक खतरा होता है. ज्यादा वजन वाली महिलाओं को भी कम वजन वाली महिलाओं की तुलना में सर्जरी कराने की अधिक संभावना होती है.

तुरंत एक्शन लेने की जरूरत
स्टडी इन असमानताओं को दूर करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप की तुरंत जरूरत पर जोर देता है. सिफारिशों में पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम को बढ़ाना, गाइनेकोलॉजिकल काउंसलिंग तक पहुंच बढ़ाना और आक्रामक सर्जरी पर निर्भरता को कम करने के लिए मेंस्ट्रुअल और रिप्रोडक्टिव हेल्थ के बारे में जागरूकता बढ़ाना शामिल है. अनैतिक प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए निजी स्वास्थ्य सेवा प्रथाओं और बीमा योजनाओं की सख्त निगरानी जरूरी है. इसके अलावा, लेबर इंटेंसिव सेक्टर में काम करने की स्थिति में सुधार और कीटनाशकों जैसे हार्मफुल रिस्क को कंट्रोल करना जरूरी है.

बेवजह की हिस्टेरेक्टॉमी से बचने की जरूरत
इस स्टडी के नतीजों से ये पता चलता है कि बेवजह की हिस्टेरेक्टॉमी और उसके लॉन्ग टर्म इफेक्ट (मेनोपॉज, ऑस्टियोपोरोसिस और कार्डियोवेस्कुलर रिस्क) को रोकने के लिए प्रिवेंटिव केयर और अर्ली डायग्नोसिस कितनी जरूरी है. रिसर्चर्स महिलाओं को उनकी हेल्थ और ट्रीटमेंट ऑप्शन के बारे में जानकारी के साथ सशक्त बनाने की वकालत करते हैं. ये समझना जरूरी है कि गर्भाशय निकलवाना आखिरी उपाय है, इससे बचने के लिए आपको महिला स्वास्थ्य को लेकर पहले से जागरूक रहना होगा.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button