वैष्णो देवी की तीन पिंडियों का क्या है रहस्य!

जम्मू-कश्मीर के माता वैष्णो देवी का मंदिर भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. यहां स्थित माता की तीन पिंडियां किसी रहस्य से कम नहीं है. आइए जानते हैं कि माता वैष्णो देवी की तीन पिंडियों के अद्भुत रहस्य के बारे में.

कहते हैं कि मां वैष्णो देवी का एक बुलावा भक्तों को उनकी ओर खींच लाता है. भक्त कठिन रास्तों और ऊंचे पहाड़ों को पार करते हुए मां के दर्शन के लिए दौड़े चले आते हैं. जम्मू-कश्मीर की हसीन वादियों में, उधमपुर जिले के कटरा से 12 किलोमीटर दूर स्थित माता वैष्णो देवी का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उसे वैष्णो देवी पहाड़ी के नाम से जाना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता वैष्णो देवी की तीन पिंडियों का रहस्य क्या है? अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं इस रहस्यमयी कथा के बारे में.

मां वैष्णो देवी से जुड़ी पौराणिक कथा
माता वैष्णो देवी के अवतरण और मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक अत्यंत रोचक कथा है. एक बार श्रीधर नामक भक्त ने नवरात्रि के अवसर पर कुंवारी कन्याओं के पूजन का आयोजन किया. मां वैष्णो देवी ने कन्या रूप में स्वयं वहां उपस्थिति दर्ज कराई. पूजन के बाद सभी कन्याएं चली गईं, लेकिन मां वहीं रुकी रहीं और श्रीधर से कहा- “पूरे गांव को भंडारे का निमंत्रण दे आओ.” गरीब श्रीधर सोच में पड़ गए कि इतने लोगों को भोजन कैसे कराएंगे? लेकिन मां के कहने पर उन्होंने गांव के सभी लोगों के साथ गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ को भी आमंत्रित कर लिया. जब भंडारा शुरू हुआ, तो कन्या रूपी मां एक दिव्य पात्र से सभी को भोजन परोस रही थीं. जब भैरवनाथ की बारी आई, तो उसने वैष्णव भोजन के बजाय मांसाहार और मदिरा की मांग की.

माता ने उसे समझाने की कोशिश की कि यह ब्राह्मण के घर का भोजन है, लेकिन भैरवनाथ जिद पर अड़े रहे. जब उसने मां का अपमान किया और उन्हें पकड़ने की कोशिश की, तो माता ने वायु रूप धारण किया और त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं. भैरवनाथ उनका पीछा करने लगा.

अर्धक्वारी गुफा और हनुमानजी का पराक्रम

मां त्रिकूटा पर्वत पहुंचीं और अर्धक्वारी गुफा में नौ माह तक ध्यान में रहीं. माता ने हनुमानजी को बुलाया और भैरवनाथ से युद्ध करने को कहा. हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरवनाथ को रोककर उससे युद्ध किया. इसी दौरान हनुमानजी को प्यास लगी, तो माता ने अपने धनुष से बाण चलाकर एक जलधारा प्रकट की, जिसे आज “बाणगंगा” के नाम से जाना जाता है.

भैरवनाथ का अंत और मोक्ष

जब भैरवनाथ हनुमानजी से मुकाबला नहीं कर सका, तो मां वैष्णवी ने महाकाली का रूप धारण कर उसका वध कर दिया. भैरवनाथ का सिर भवन से 8 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा, जहां आज भैरवनाथ का मंदिर स्थित है. भैरवनाथ ने मृत्यु के समय माता से क्षमा याचना की. माता ने न केवल उसे मोक्ष प्रदान किया, बल्कि यह भी कहा- “जो भी मेरे दर्शन को आएगा, उसे भैरवनाथ के भी दर्शन करने होंगे, तभी उसकी यात्रा पूरी होगी.” यही वजह है कि आज भी माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु भैरवनाथ के मंदिर जाते हैं.

मां वैष्णो देवी की तीन पिंडियों का रहस्य

भैरवनाथ के वध के बाद माता ने तीन पिंडों सहित एक चट्टान का रूप धारण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं. तभी श्रीधर को एक स्वप्न आया, जिसमें त्रिकूटा पर्वत और तीन पिंडियों का दर्शन हुआ. जब उन्होंने इन्हें खोज निकाला, तो माता के आदेशानुसार उनकी पूजा-अर्चना शुरू की. तब से मां वैष्णो देवी की पूजा श्रीधर और उनके वंशजों द्वारा की जाती है. इन तीनों पिंडियों को आदिशक्ति के तीन स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है, जिनमें महासरस्वती (विद्या और ज्ञान की देवी), महालक्ष्मी (धन और समृद्धि की देवी) और महाकाली (शक्ति और पराक्रम की देवी) शामिल हैं.

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