अमेरिका और चीन के बीच 2032 में छिड़ सकती है जंग!

एक अमेरिकी थिंक टैंक ने 2032 में अमेरिका और चीन के बीच परमाणु युद्ध की संभावना पर विचार किया है. रिपोर्ट के मुताबिक, अगर यह युद्ध हुआ तो भयानक तबाही मचेगी.

क्या चीन से सीधी जंग में अमेरिका भारी पड़ेगा? या ड्रैगन की सेना अंकल सैम को नेस्तनाबूद कर देगी? अगर परंपरागत युद्ध ने परमाणु युद्ध का रूप लिया तो कौन जीतेगा? ऐसे ही तमाम सवालों के संभावित जवाब तलाशने को वाशिंगटन के एक थिंक-टैंक ने टेबलटॉप एक्सरसाइज की. सेंटर फॉर अ न्यू अमेरिका सिक्योरिटी (CNAS) नामक थिंक-टैंक की पहल पर, एक्सपर्ट्स ने 2032 में अमेरिका और चीन के बीच परमाणु युद्ध छिड़ने के हालात पर विचार किया. नतीजे बेहद भयावह रहे

एक्सपर्ट्स के अनुसार, ताइवान को लेकर दोनों देशों की जंग कुछ ही समय में परमाणु संघर्ष का रूप ले लेगी. ऐसा कोई भी युद्ध पूरी दुनिया के लिए तबाही की वजह बन सकता है.

कैसे होगी अमेरिका और चीन की जंग?

CNAS के एक्सपर्ट्स ने जिस संभावना पर विचार किया, उसके अनुसार ताइवान को लेकर सिर्फ 45 दिन की जंग के बाद ही चीन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है. इन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल अमेरिकी शहरों पर नहीं, बल्कि उसे सैन्य और रणनीतिक ठिकानों पर होगा ताकि अमेरिका को घुटनों पर लाया जा सके.

अमेरिका और चीन: किसके पास ज्यादा परमाणु ताकत?

परमाणु हथियारों की संख्या और उनकी वैराइटी को देखें तो अमेरिका कहीं ज्यादा मजबूत नजर आता है. अमेरिका के पास जमीन से लेकर पनडुब्बियों से लॉन्च किए जा सकने वाले परमाणु हथियार हैं और रणनीतिक बमवर्षक भी. इस वजह से अमेरिका के पास सेकंड-स्ट्राइक की क्षमता है यानी वह परमाणु हमले के बावजूद प्रभावी ढंग से पलटवार कर सकता है.

दूसरी तरफ, चीन की न्यूक्लियर फोर्स छोटी और परंपरागत है. हालांकि, हाल के सालों में चीन ने अपने परमाणु जखीरे का तेजी से विस्तार और आधुनिकीकरण किया है. इनमें नई मोबाइल मिसाइल प्रणाली, पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइलों में सुधार और कई मजबूत आईसीबीएम साइलो का निर्माण शामिल है.2030 तक, चीन के पास लगभग 1,000 ऑपरेशन परमाणु हथियार होने की उम्मीद है.

SIPRI की रिपोर्ट बताती है कि चीन अपने परमाणु जखीरे में किसी दूसरे देश के मुकाबले सबसे तेजी से इजाफा कर रहा है. हालांकि, चीन के परमाणु सिद्धांत ने ऐतिहासिक रूप से पहले प्रयोग न करने की नीति पर जोर दिया है. लेकिन हालिया बदलाव यह इशारा करते हैं क‍ि चीन इस नीति से हट भी सकता है.

अमेरिका पर भारी पड़ सकता है चीन!

CNAS की एक्सरसाइज में एक्सपर्ट्स ने कहा कि लंबे संघर्ष की सूरत में, ऐसी स्थितियां बन सकती हैं जिसमें चीन को गैर-रणनीतिक परमाणु हथियारों का प्रयोग सही लग सकता है. संभावना जाहिर की गई कि चीन ‘नो फर्स्ट यूज’ पॉलिसी के बावजूद सीमित पैमाने पर परमाणु हमले कर सकता है. अगर चीन ऐसा करता है तो अमेरिका को एक अहम फैसला करना होगा.

एक्सरसाइज के अनुसार, अमेरिका इस तरह के उकसावे का समान रूप से जवाब देने में संघर्ष कर सकता है. वहां कुछ लोग जैसे को तैसा की तर्ज पर परमाणु प्रतिक्रिया की वकालत कर सकते हैं, जबकि अन्य तर्क दे सकते हैं कि ताइवान में अमेरिकी हित आगे परमाणु युद्ध के जोखिमों को उचित नहीं ठहराते हैं.

इस सैन्य अभ्यास के मुताबिक, चीन लाभ की स्थिति में है, क्योंकि एशिया में कई अमेरिकी सैन्य निशाने मौजूद हैं, जिनमें नौसैनिक परिसंपत्तियां और सुविधाएं भी शामिल हैं. अमेरिकी टीम को दिक्कत आएगी क्योंकि जवाबी हमलों के अधिकतर टारगेट मुख्‍य चीनी भूमि पर हैं.

संघर्ष के 45वें दिन तक अमेरिका की सबसे उन्नत गैर-परमाणु मिसाइलें समाप्त हो जाएंगी. रूस से उलट, अमेरिका के पास अब न्यूक्लियर-टिप्ड  एंटी-शिप मिसाइलें नहीं हैं, जिससे उसके विकल्प सीमित हो गए हैं.

दुनिया पर क्या असर होगा?

अमेरिका और चीन के बीच परमाणु युद्ध का दुनिया पर विनाशकारी असर होगा. परमाणु हथियारों से तात्कालिक तबाही तो मचेगी ही, उसके आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय प्रभाव पूरी दुनिया महसूस करेगी. ऐसे किसी संघर्ष में ‘जीत’ का कोई मतलब नहीं रह जाता.

 

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