उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाए गंभीर सवाल

भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां जज कानून बनाएंगे!

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत सुप्रीम कोर्ट को केवल संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है और वह भी कम से कम 5 जजों की पीठ द्वारा।उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, ‘हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए।

अनुच्छेद 142 के तहत भारत का सुप्रीम कोर्ट पूर्ण न्याय (कम्पलीट जस्टिस) करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां जज कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक सुपर संसद के रूप में कार्य करें.

उन्होंने कहा, ‘हाल ही में जजों ने राष्ट्रपति को लगभग आदेश दे दिया और उसे कानून की तरह माना गया, जबकि वे संविधान की ताकत को भूल गए। अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक ‘न्यूक्लियर मिसाइल’ बन गया है, जो चौबीसों घंटे न्यायपालिका के पास उपलब्ध है।’

‘बहुत ऊंचा है भारत में राष्ट्रपति का पद’
उपराष्ट्रपति ने कहा, “भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं. हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है.”

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शक्तियों के विभाजन पर जोर देते हुए कहा, “कार्यपालिका, सरकार, लोगों की ओर से चुने जाते हैं. सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है, सरकार चुनाव में लोगों के प्रति जवाबदेह होती है. वहां जवाबदेही का सिद्धांत संचालन में है. संसद में आप महत्वपूर्ण सवाल पूछ सकते हैं क्योंकि शासन कार्यपालिका से है.”

धनखड़ ने ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ सिद्धांत को लेकर भी पूर्व न्यायाधीशों पर निशाना साधा। उन्होंने एक पूर्व जज की ओर से लिखित पुस्तक के विमोचन समारोह का जिक्र किया, जिसमें इस सिद्धांत की प्रशंसा की गई थी। उन्होंने कहा, ‘केशवानंद भारती केस में 13 जजों की पीठ थी और फैसला 7 अनुपात 6 से हुआ था। इसे अब हमारी रक्षा का आधार बताया जा रहा है, लेकिन उसी के दो साल बाद 1975 में आपातकाल लगाया गया। लाखों लोगों को जेल में डाला गया और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकार लागू नहीं होंगे। फिर इस सिद्धांत का क्या हुआ?’

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