नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं होंगे विपक्ष के CM

नई दिल्ली : इस महीने की 27 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली नीति आयोग की बैठक का विपक्ष के मुख्यमंत्रियों ने बहिष्कार की घोषणा की है. हालांकि, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बैठक में शामिल होकर केंद्र सरकार के प्रति अपना विरोध दर्ज करवाएंगी.
विपक्ष का आरोप है कि आम बजट में गैर एनडीए शासित राज्यों की अनदेखी की गई है. इस कारण वे इस बजट के विरोध में इस बैठक का बहिष्कार करेंगे. इसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, पंजाब सहित तमाम विपक्ष शासित राज्य शामिल हैं.
इन गैर एनडीए शासित राज्यों का कहना है कि मोदी सरकार ने सत्ता में बने रहने के लिए इस बजट में केवल बिहार और आंध्र प्रदेश पर विशेष ध्यान दिया गया. अन्य राज्यों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. गौरतलब है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पहले ही केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है. राज्य सरकार ने ‘मेरा कर मेरा अधिकार’ अभियान भी चलाया था. उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि केंद्र सरकार संघीय ढांचे की भावनाओं के अनुरूप राज्य को उचित सहायता नहीं दे रही है.
क्या बैकफुट पर मोदी सरकार?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्ष के मुख्यमंत्रियों द्वारा बैठक का बहिष्कार करने का असर क्या होगा? इस सवाल पर आने से पहले हमें नीति आयोग को थोड़ा समझना होगा. दरअसल, केंद्र में 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा की सरकार बनी थी उसके बाद 2015 में नीति आयोग की स्थापना की. नीति आयोग यानी नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया है. इसकी स्थापना योजना आयोग को भंग कर की गई. योजना आयोग का काम केंद्र और राज्य की सरकारों को देश की जरूरत के हिसाब तमाम योजनाएं बनाने में वित्त मंत्रालय और भारत सरकार का सहयोग करना था. लेकिन, मोदी सरकार ने इसे खत्म कर जो नीति आयोग बनाई उसका काम मुख्य रूप से एक थिंक टैंक का हो गया.
नीति आयोग अब सरकार के विभिन्न क्रार्यक्रमों और नीतियों के बारे में इनपुट्स उपलब्ध करवाता है. इसका बजट निर्माण या सरकार के वित्तीय कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं होता. नीति आयोग का मकसद भारत सरकार और राज्यों को एक मंच उपलब्ध करवाना है. यहां पर सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश एक साथ बैठकर राष्ट्रीय हित में नीतियों के निर्माण को लेकर अपनी बात रखते हैं.
नीति आयोग की बैठक
प्रधानमंत्री इस आयोग के अध्यक्ष होते हैं. उनकी अध्यक्षता में हर साल इसकी गवर्निंग काउंसिल की बैठक होती है. केंद्रीय सचिवालय की ओर से जारी एक आदेश के तहत इस काउंसिल की स्थापना की गई है. इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और प्रशासक सदस्य हैं. अब तक इस गवर्निंग काउंसिल की आठ बैठकें हो चुकी हैं. इस बैठक में कोऑपरेटिव फेडरलिज्म, विभिन्न सेक्टरों, विभागों से जुडे़ विषयों और संघीय मुद्दों पर चर्चा होती है. बैठक का मकसद राष्ट्रीय विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाना है.
बहिषकार से क्या होगा?
कुल मिलाकार नीति आयोग कोई संवैधानिक संस्था नहीं है. इसकी बैठक में कोई मुख्यमंत्री शामिल होने के लिए बाध्य नहीं है. नीति आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक कंसल्टेंसी एजेंसी के रूप में काम करता है. ऐसे में विपक्ष के मुख्यमंत्रियों के भाग नहीं लेने से इसकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हां, इतना जरूर है कि इसमें वे राज्य अपनी बात नहीं रख पाएंगे. कुल मिलाकर यह पूरी तरह से एक राजनीतिक मसला है. इसमें भाग लेने या न लेने से किसी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
बीती बैठक से भी दूर थे कई सीएम
2023 में गवर्निंग काउंसिल की हुई आठवीं बैठक से भी कई मुख्यमंत्री गायब थे. उसमें पश्चिम बंगाल की सीएम ममत बनर्जी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, तेलंगाना के तत्कालिन सीएम केसीआर, राजस्थान के तत्कालिन सीएम अशोक गहलोत और केरल के सीएम पिनारयी विजयन के नाम शामिल हैं.