सुप्रीम कोर्ट में बड़ी बहस, आस्था भी बनी रहे और संपत्ति भी?

मेरी संपत्ति का फैसला शरीयत नहीं उत्तराधिकार कानून से हो!

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट वह याचिका सुनने के लिए तैयार हो गया है, जिसमें पूछा गया कि क्या मुस्लिम समुदाय अपनी धार्मिक आस्था छोड़े बिना संपत्ति का बंटवारा शरीयत के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत कर सकता है. केरल के एक मुस्लिम शख्स की याचिका पर कोर्ट ने संज्ञान लिया.

याचिका में मांग की गई है कि मुस्लिम समुदाय को पैतृक संपत्तियों और स्व-अर्जित संपत्तियों के मामले में शरीयत के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून के दायरे में लाया जाए, साथ ही इससे उनकी आस्था पर भी असर न पड़े.

मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने केरल के त्रिशूर जिले के रहने वाले नौशाद के.के. की याचिका पर संज्ञान लिया. नौशाद ने कहा कि वह धर्म के रूप में इस्लाम का त्याग किए बिना शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत आना चाहते हैं. बेंच ने उनकी याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा.

याचिका में कहा गया कि शरीयत के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा ही वसीयत के माध्यम से दे सकता है और सुन्नी मुसलमानों में यह अधिकार गैर-उत्तराधिकारियों तक ही सीमित है. याचिका में कहा गया कि शरीयत के अनुसार बाकी के दो-तिहाई हिस्से को निर्धारित इस्लामी उत्तराधिकार सिद्धांतों के अनुसार कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच वितरित किया जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि अगर कोई शरीयत से अलग करना चाहे तो वह तब तक अमान्य माना जाएगा जब तक कि कानूनी उत्तराधिकारी सहमति न दें. वसीयत की स्वतंत्रता पर यह प्रतिबंध गंभीर संवैधानिक चिंताओं को जन्म देता है.

याचिका में तर्क दिया गया कि धार्मिक उत्तराधिकार नियमों का अनिवार्य अनुप्रयोग संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) जैसे प्रमुख प्रावधानों का उल्लंघन करता है. याचिका में बताया गया कि मुसलमानों को वसीयत बनाने की वो स्वतंत्रता नहीं दी जाती जो अन्य समुदायों के सदस्यों को दी जाती है, यहां तक ​​कि धर्मनिरपेक्ष विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने वाले मुसलमानों को भी यह स्वतंत्रता नहीं दी जाती और इससे मनमाना और भेदभावपूर्ण वर्गीकरण पैदा होता है.

याचिकाकर्ता ने विधायिका को यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया कि वह धार्मिक पहचान के बावजूद सभी व्यक्तियों के लिए वसीयत संबंधी स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संशोधनों या दिशानिर्देशों को लागू करने पर विचार करे. नोटिस जारी करते हुए बेंच ने इस याचिका को इसी मुद्दे पर लंबित समान याचिकाओं के साथ संलग्न करने का आदेश दिया.

इससे पहले, पिछले साल अप्रैल में पीठ ने अलप्पुझा निवासी और ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’ की महासचिव सफिया पी एम की याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी. याचिका में कहा गया था कि वह एक नास्तिक मुस्लिम महिला हैं और वह अपनी पैतृक संपत्तियों का निपटान शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत करना चाहती हैं. इसी तरह ‘कुरान सुन्नत सोसाइटी’ ने 2016 में एक याचिका दायर की थी जो सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. अब तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी.

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