इजरायली सेना द्वारा गाजा क्षेत्र में खास हमलों के लिए AI टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल

AI प्रोग्राम की मदद से 37,000 हमास के ठिकानों की पहचान

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजरायल की सेना गाजा क्षेत्र में खास हमलों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है. एक रिपोर्ट के अनुसार, सेना ने “लैवेंडर” नाम के AI प्रोग्राम की मदद से 37,000 हमास के ठिकानों की पहचान की है. इसी तरह लैवेंडर AI का इस्तेमाल हमास और फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) के सदस्यों को ढूंढने में भी किया जा रहा है, ताकि उनको बम से निशाना बनाया जा सके. सेना का कहना है कि वे AI का इस्तेमाल इसलिए कर रहे हैं ताकि इंसानों के फैसले लेने में लगने वाले समय की बचत हो सके. इससे जल्दी ठिकानों की पहचान हो पाएगी और हमलों की मंजूरी भी तेजी से मिल सकेगी.

ठिकाने ढूंढने में करता है मदद
एक खुफिया अधिकारी ने बताया कि ‘AI ने ये काम बिना किसी हिचकिचाहट के कर दिया. इससे हमारा काम आसान हो गया.’ उन्होंने आगे कहा कि ‘पहले मैं हर ठिकाने पर 20 सेकंड लगाता था और रोजाना दर्जनों ठिकानों की जांच करता था. AI की वजह से अब मेरा काम सिर्फ मंजूरी देना रह गया है. इस वजह से बहुत समय बच रहा है.’ लैवेंडर के अलावा गॉस्पेल एआई का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे इंसानों के बजाय इमारतों पर टारगेट कर रहा है.

दो एआई सिस्टम का हो रहा उपयोग
लैवेंडर के साथ-साथ गॉस्पेल नामक एक अन्य एआई-सिस्टम का भी उपयोग किया जा रहा है, जो व्यक्तियों के बजाय इमारतों और संरचनाओं को लक्ष्य बनाने के लिए तैयार किया गया है। हालांकि लैवेंडर या द गॉस्पेल के एल्गोरिदम को प्रशिक्षित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले विशिष्ट डेटा के बारे में वर्तमान में कोई जानकारी नहीं है। मगर रिपोर्टों के अनुसार, लैवेंडर ने 90 प्रतिशत सटीकता दर पर काम करता है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लैवेंडर सॉफ्टवेयर बड़े पैमाने पर निगरानी का उपयोग करके गाजा पट्टी के 2.3 मिलियन निवासियों में से अधिकांश से एकत्र की गई जानकारी को देखता है। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि संभावित लक्ष्यों के कम्युनिकेशन प्रोफाइल का उपयोग करके लैवेंडर को प्रशिक्षित करने से कभी-कभी सिस्टम को लागू करने पर गलती से नागरिकों को निशाना बनाया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लैवेंडर मानव नियंत्रण के बिना ऑटोमेटिकली संचालित होता है, जिससे नागरिक संचार प्रोफाइल वाले कई लोग लक्ष्य बन जाते हैं।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि टारगेट के बातचीत करने के तरीके को आधार बनाकर लैवेंडर को ट्रैनिंग देना, बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने पर कभी-कभी गलती से आम लोगों को भी निशाना बना सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लैवेंडर बिना किसी इंसान के कंट्रोल के खुद-ब-खुद काम करता है, जिससे आम लोगों की बातचीत करने के तरीके भी उसे टारगेट की तरह लग सकते हैं.

जासूसी करने वालों के घर भी टारगेट पर
खबरों के मुताबिक, इजरायली सेना उन खास लोगों को उनके घरों पर भी ढूंढकर निशाना बना रही थी. ऐसा इसलिए किया जा रहा था क्योंकि जासूसी करने के नजरिए से उन्हें उनके घरों पर ढूंढना ज्यादा आसान था. ऐसा करने के लिए इजरायली सेना एक और नई तकनीक का इस्तेमाल कर रही थी जिसे “व्हेयर इज डैडी?” कहा जाता है. इस तकनीक की मदद से वे लोगों को ढूंढते थे और फिर उनके परिवार के घरों पर हमला कर देते थे.

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