क्या यही है धरती के विनाश की निशानी?

वाशिंगटनः पिछले दशक में गर्मी और धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। अब सूरज की गर्मी परेशान ही नहीं करती, बल्कि जलाती और झुलसाती है। आपने इस बार की गर्मियों में राजस्थान में गाड़ी के बोनट पर सेना के जवानों को रोटियां पकाते देखा होगा और यहां की रेतीली जमीन में पापड़ सेंकते भी देखा होगा। इस बार राजस्थान में अधिकतम तापमान 55 डिग्री को भी पार कर गया। दुनिया के अन्य देशों में भी कही जगह तापमान इसी गति से आगे बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ में समुद्र का तापमान 400 वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। यहां का पानी गत 400 सालों में सबसे गर्म रहा है। क्या ये धरती के विनाश की निशानी है?

शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में चेतावनी दी है कि यदि धरती के तापमान में लगातार हो रही वृद्धि को नहीं रोका गया तो प्रवाल भित्तियों का अस्तित्व मिट जाएगा। दुनिया का सबसे बड़ा ‘कोरल रीफ इकोसिस्टम’ और सबसे अधिक जैव विविधता वाले पारिस्थिकी तंत्र में से एक ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ को वर्ष 2016 से 2024 के बीच बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है। समुद्र का तापमान अधिक हो जाने से ऐसा हुआ है। ‘ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क अथॉरिटी’ के अनुसार, इस साल की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी तट से दूर ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ में 300 से अधिक प्रवाल भित्ति के हवाई सर्वेक्षण में दो-तिहाई हिस्से में नुकसान देखा गया।

1618 से शुरू हुआ था अध्यन
मेलबर्न विश्वविद्यालय और ऑस्ट्रेलिया के अन्य विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं ने ‘नेचर’ पत्रिका में बुधवार को प्रकाशित एक शोधपत्र में कहा कि उन्होंने कोरल सागर से कोरल या प्रवाल भित्तियों के नमूनों का इस्तेमाल करके 1618 से 1995 तक के समुद्र के तापमान के आंकड़ों का अध्ययन किया। इस अवधि की तुलना हाल के समय में समुद्र के तापमान से की गई। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में 1900 से 2024 तक के समुद्र के तापमान को भी शामिल किया।

अध्ययन के प्रमुख लेखक और मेलबर्न विश्वविद्यालय में टिकाऊ शहरी प्रबंधन के व्याख्याता बेंजामिन हेनले ने कहा, ‘‘ये प्रवाल भित्ति खतरे में है और अगर हम अपने वर्तमान रास्ते से नहीं हटे, तो हमारी पीढ़ी संभवतः इन महान प्राकृतिक आश्चर्यों में से एक के विनाश की गवाह बनेगी।’’ अध्ययन के लेखकों ने कहा कि यदि वैश्विक तापमान वृद्धि को पेरिस समझौते के लक्ष्य के भीतर भी रखा जाए तो भी विश्व भर में 70 से 90 प्रतिशत प्रवाल खतरे में पड़ सकते हैं।

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