अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : इन पांच महिलाओं ने किया ऐसा काम, जो आज भी याद रखती है दुनिया
हर साल, जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है.

महिलाएं समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. पूरे इतिहास में, उन्हें दबाया गया है, हाशिए पर रखा गया है और यहां तक कि उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया गया है. हालांकि, यह महिलाएं ही हैं जिन्होंने दुनिया की स्थिरता, प्रगति और दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित किया है. वे अपनी शक्ति, दृढ़ संकल्प और विश्वास के कारण दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाती हैं, चाहे वे गृहिणी हों, इंजीनियर हों, शिक्षक हों, आदि.
हर साल, जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है.
दूसरी तरफ देखा जाए तो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी कई महिलाओं की यात्रा पर ध्यान जाता है, जिन्होंने अपने समय की कठिन काल के खिलाफ, हमारे देश के भाग्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन महिलाओं ने साधारण परिस्थितियों को असाधारण मील के पत्थर में बदल दिया, सशक्तिकरण और दृढ़ता का सार प्रस्तुत किया जिसने भारत को संप्रभुता हासिल करने में मदद की. ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, हम पांच ऐसी महिलाओं की कहानी बताएंगे, जिन्होंने समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और महिलाओं के लिए अवसर खोले.
सावित्रीबाई फुले
उनका जन्म 3 जनवरी, 1931 को महाराष्ट्र के नायगांव गांव में हुआ था. उन्हें भारत की पहली नारीवादियों में गिना जाता है. वे एक अच्छी शिक्षिका और जाति-भेद विरोधी कार्यकर्ता थीं. वे देश की पहली महिला शिक्षिका थीं. उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के सहयोग से महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1848 में सावित्रीबाई और उनके पति ने पुणे में भिड़े वाडा में लड़कियों के लिए पहला आधुनिक भारतीय विद्यालय स्थापित किया. वे एक विपुल मराठी लेखिका भी थीं.
मदर टेरेसा
मदर टेरेसा अल्बानियाई मूल की थीं, लेकिन उन्होंने भारत के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया. वह कोलकाता में उनके मानवीय कार्यों के कारण भारत का पर्याय बन गईं. गरीबों, बीमारों और हाशिए पर पड़े लोगों की सेवा में उनके अथक प्रयासों के लिए उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वह निस्वार्थ भाव से काम करती थीं. उन्होंने मात्र 18 साल की उम्र में भौतिक चीजों का त्याग कर दया भावना से दूसरों की सेवा में लग गईं. उनका मिशनरीज ऑफ चैरिटी संगठन आज भी वंचितों की मदद करता है. उन्होंने 25 जनवरी, 1980 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था.
अहिल्याबाई होल्कर
उनका जन्म 31 मई, 1725 को मराठा साम्राज्य के ग्राम चुंडी में हुआ था. उन्हें भारतीय इतिहास की सबसे बेहतरीन महिला शासकों में से एक माना जाता है. उन्होंने 18वीं शताब्दी में धर्म का संदेश फैलाया और औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया. अपने पति और ससुर की मृत्यु के बाद उन्होंने मालवा पर बुद्धिमानी और सूझबूझ से शासन किया. कई मौकों पर उन्होंने हाथी पर धनुष और बाण से लैस एक बहादुर योद्धा की तरह खुद सेना का नेतृत्व किया. ऐसा कहा जाता है कि उनके शासनकाल के दौरान, मालवा पर कभी हमला नहीं हुआ और यह स्थिरता और शांति का नखलिस्तान बना रहा. सबसे बड़ी बात उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिए स्कूल, कॉलेज बनवाए. गरीबों की मदद के लिए कई कार्यक्रम चलाए. उन्होंने शिव भक्ति के साथ जीवन बीताते हुए समाज में महिलाओं के उत्थान के लिए काम किया. सती प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया.
विजया लक्ष्मी पंडित
विजया लक्ष्मी पंडित विश्व में भारत की बड़ी आवाजों में से एक थीं. एक अग्रणी नीति निर्माता, राजनेता और राजनयिक, उन्होंने दुनिया भर में कई क्षेत्रों में महिलाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया. एक प्रमुख राजनीतिज्ञ के रूप में, वह भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री थीं. उनकी उपलब्धियां बड़ी थीं. वह संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत की पहली राजदूत, सोवियत संघ की पहली राजदूत और संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष के रूप में चुनी गई पहली महिला थीं. उन्होंने महिलाओं के लिए जान की बाजी लगा दी. उन्होंने महिलाओं को अपने पति और पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार प्राप्त कराने के प्रयास किए.
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू, जिन्हें ‘भारत की कोकिला’ के नाम से जाना जाता है, वह एक कवियित्री और भारत की स्वतंत्रता की कट्टर समर्थक थीं. महात्मा गांधी और अन्य लोगों के साथ मिलकर उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सरोजिनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला बनीं, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के मार्ग को प्रभावित किया. उनका जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद, ब्रिटिश भारत राज्य में हुआ था. बाद में 1947 में वह संयुक्त प्रांत की राज्यपाल बनीं. वह भारत के डोमिनियन में राज्यपाल का पद संभालने वाली पहली महिला थीं.