26 जनवरी 1950 को लागू किया तो संविधान का 13 दिसंबर से क्या है नाता?
देश में संविधान लागू होने के 75 साल के मौके को समर्पित केंद्र सरकार के विशेष अभियान के तहत 13 और 14 दिसंबर को लोकसभा में संविधान के विषय पर चर्चा होगी. संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान बहस के लिए इन तारीखों को तय करने के पीछे संविधान के निर्माण प्रक्रिया से जुड़ा एक ऐतिहासिक तथ्य भी है, जिसका बेहद कम जिक्र होता है.

देश में संविधान लागू हुए 75 साल पूरे हो चुके हैं. संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में 13 और 14 दिसंबर को संविधान के विषय पर चर्चा होगी. भारत सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस पर पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल और संविधान सदन में साल भर चलने वाले राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत की थी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों और संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की मौजूदगी में ‘हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान’ अभियान के तहत आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया था.
लोकसभा में संविधान के विषय पर 13 और 14 दिसंबर को विशेष चर्चा क्यों?
संविधान लागू होने के 75 साल को समर्पित अभियान के तहत ही 13 और 14 दिसंबर को लोकसभा में संविधान के विषय पर चर्चा तय की गई है. इन तारीखों को तय करने के पीछे संविधान के निर्माण से जुड़ा एक ऐतिहासिक तथ्य भी है. हालांकि, उसका जिक्र बेहद कम होता है. दरअसल, 26 नवंबर 1949 को, भारत की संविधान सभा ने संविधान को अपनाया, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ. लेकिन ये सब देश की आजादी के बाद की घटनाएं हैं. इससे पहले 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पेश किया.
13 दिसंबर, 1946 का उद्देश्य प्रस्ताव ही बदलकर बना संविधान की प्रस्तावना
इस प्रस्ताव पर चर्चा के बाद 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से मंजूर कर लिया गया था. संविधान के स्वरूप को इस उद्देश्य प्रस्ताव ने काफी हद तक प्रभावित किया. दुनिया के सबसे लंबे और लिखित संविधान की वर्तमान प्रस्तावना उस उद्देश्य प्रस्ताव का ही परिवर्तित रूप है. इसे संविधान की आत्मा तक कहा जाता है. इसमें संविधान का सार गणित के सूत्रों की तरह बताया गया है. जिसका सपना प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कई दशकों बाद 1895 में पहली बार संविधान सभा की मांग करते हुए पूर्ण स्वाराज्य का नारा बुंलद करने वाले बाल गंगाधर तिलक ने देखा था.
संविधान से जुड़े कुछ और ऐतिहासक तथ्यों को सिलसिलेवार जानें और समझें
भारत में कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा का गठन हुआ था. इसके लिए जुलाई 1946 में चुनाव भी हुए थे. इसके बाद नौ दिसंबर 1946 को कंस्टिट्यूशन हॉल में संविधान सभा की पहली बैठक हुई. यह बैठक आजाद भारत की ओर बढ़ने की मजबूत यात्रा की शुरुआत थी. तब से लेकर 14 अगस्त 1947 की रात 11 बजे की संविधान सभा की बैठक तक इतिहास नई करवट ले चुका था. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव रखे जाने के साथ ही विश्व के सबसे विशाल लिखित संविधान की तैयारी भी तेज हो गई थी. संविधान सभा में 299 सदस्य थे और डॉ. राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष थे.
2 साल 11 महीने और 18 दिनों में पूर्ण रूप से तैयार हुआ था हमारा संविधान
ड्राफ्टिंग कमिटी का नेतृत्व डॉ. भीमराव अंबेडकर कर रहे थे. संविधान को पूर्ण रूप से तैयार होने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन का समय लगा था. डॉ अंबेडकर ने 4 नवंबर, 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया. इसी मौके पर संविधान को पहली बार पढ़ा गया. संविधान सभा में इस पर पांच दिन आम चर्चा हुई. संविधान पर दूसरी बार 15 नवंबर, 1948 से विचार विमर्श होना शुरू हुआ और यह 17 अक्टूबर, 1949 तक चला. इस तीन दिनों में कम से कम 7,653 संशोधन प्रस्ताव आये. इनमें से 2,473 मुद्दों पर सभा में चर्चा हुई.
299 सदस्यों में से 284 सदस्यों के हस्ताक्षर से पास हुआ था संविधान का प्रस्ताव
संविधान पर तीसरी बार 14 नवंबर, 1949 से चर्चा शुरू हुई. तब डॉ. अंबेडकर ने ‘द कॉन्सटिट्यूशन ऐज़ सैटल्ड बाई द असेंबली बी पास्ड’ प्रस्ताव पेश किया था. संविधान के प्रारूप पर पेश इस प्रस्ताव को 26 नवंबर, 1949 को पास कर दिया गया. सभा के कुल 299 सदस्यों में से 284 सदस्य ने संविधान पर हस्ताक्षर किए थे. 26 नवंबर, 1949 को भारतीय संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया था. तब संविधान में प्रस्तावना के अलावा 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं. दो महीने बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान को लागू किया गया था. इस दिन को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं.