हरियाणा में कांग्रेस के लिए कितनी जरूरी हैं कुमारी शैलजा?

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कांग्रेस की लोकसभा सांसद कुमारी शैलजा को भाजपा में शामिल होने का ऑफर देकर राजनीतिक हलचल मचा दी है. हरियाणा कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से नाराज बताई जा रही कुमारी शैलजा इन दिनों प्रचार अभियान में भी कम सक्रिय दिख रही हैं.

हरियाणा विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान के बीच कांग्रेस की लोकसभा सांसद कुमारी शैलजा को लेकर सियासत सरगर्म हो गई है. पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कुमारी शैलजा को भाजपा में शामिल होने का न्योता देकर सनसनी मचा दी है. उन्होंने कहा था,  ‘बहन कुमारी शैलजा का कांग्रेस में अपमान हुआ है. हमने कई नेताओं को अपने साथ मिलाया है और हम उन्हें भी अपने साथ लाने के लिए तैयार हैं.’

शैलजा को खट्टर के ऑफर के बाद कांग्रेस में मची खलबली

मनोहर लाल खट्टर के चुनाव बीच मंच से भाजपा में आने के ऑफर के बाद कांग्रेस की आंतरिक राजनीति और कुमारी शैलजा की नाराजगी फिर से सुर्खियों में आ गई. खट्टर ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस में दलित नेता कुमारी शैलजा का अपमान हुआ है. उन्हें सरेआम गालियां तक दी गई हैं और अब वे नाराज होकर घर बैठी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा और राहुल गांधी  पर आरोप लगाते हुए कहा, “इस अपमान के बावजूद उन्हें कोई शर्म नहीं आई है. आज एक बड़ा वर्ग सोच रहा है कि क्या करें.”

कांग्रेस के लिए कुमारी शैलजा क्यों और कितनी जरूरी हैं?

रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा कांग्रेस के तीन अंदरूनी गुटों में एक कुमारी शैलजा कैंप फिलहाल सुस्त बताया जा रहा है. कुमारी शैलजा खुद पिछले हफ्ते से कांग्रेस के प्रचार अभियान से दूर बताई जा रही हैं. हालांकि, वे अपने घर पर समर्थकों से मिल रही हैं, लेकिन क्षेत्र में सक्रिय नहीं दिख रही हैं. आइए, जानते हैं कि देश और प्रदेश की राजनीति में दशक भर से बेहद मुश्किलों का सामना कर रही कांग्रेस पार्टी के लिए कुमारी शैलजा क्यों और कितनी जरूरी हैं?

 

राष्ट्रीय राजनीति की महिला और दलित चेहरा हैं कुमारी शैलजा

62 वर्ष की अनुभवी महिला राजनेता कुमारी शैलजा को भाजपा के अलावा दलित वोट बैंक की राजनीति करने वाली दूसरी पार्टियां भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही हैं. बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने भी उनके बहाने कांग्रेस पर हमला बोला. कांग्रेस में दलित राजनीति का बड़ा चेहरा होने के अलावा कुमारी शैलजा अपने राजनीतिक जीवन के बड़े हिस्से में राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख नाम रही हैं. वह कई बार लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं. उन्होंने राज्यसभा में भी काफी समय बिताया है.

हरियाणा कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में बनाया मजबूत कैंप 

केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुकी कुमारी शैलजा साल 2019 के बाद से अपने गृह राज्य हरियाणा पर फोकस कर रही हैं. अपने हालिया अभियानों से भी उन्होंने साफ कर दिया है कि वह मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार हैं. हरियाणा कांग्रेस में उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा में नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सूरजेवाला के बरअक्श तीसरे कैंप का प्रमुख माना जाता है. मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल को भी कुमारी शैलजा की इन्हीं कोशिश का हिस्सा बताया जा रहा है.

2019 में हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष बनने के बाद बढ़ा फोकस

साल 2019 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सितंबर में कुमारी शैलजा को हरियाणा कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. वह जाट समुदाय के समर्थन से ताकतवर बने भूपेंद्र सिंह हुड्डा की प्रतिद्वंद्वी थीं. जब वह संगठन की अगुआई कर रही थीं तो हुड्डा कांग्रेस विधायक दल के नेता थे. साल 2019 में कांग्रेस हरियाणा में भाजपा को हराने के करीब पहुंच गई थी. ऐसा कहा जाता था कि अगर पार्टी चुनाव से पहले अपने काम को ठीक से करती और अंदरूनी कलह से निपटती, तो वह सरकार बना सकती थी.

कुमारी शैलजा की दलित पहचान ने बढ़ाई सियासी अहमियत 

इस बार भी विधानसभा चुनाव से पहले कुमारी शैलजा ने हरियाणा में जोरदार प्रचार शुरू किया था. उन्होंने राज्य में कांग्रेस के अभियान के प्रभारी हुड्डा को साथ लिए बिना राज्य में यात्रा की अगुवाई की. लोकसभा चुनाव में सिरसा से भारी अंतर से जीत ने उनकी ताकत को और बढ़ा दिया है. कुमारी शैलजा की दलित पहचान ने उनकी अहमियत को मौजूदा राजनीति और ज्यादा बढ़ा दिया है. क्योंकि राहुल गांधी समेत कांग्रेस आलाकमान लंबे समय से जाति को अपनी राजनीति के केंद्र में रखे हुए हैं. दलित वर्ग से आने वाले एक नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

हरियाणा के सियासी माहौल में कांग्रेस के लिए शैलजा जरूरी

ऐसे समय में जब हरियाणा में कांग्रेस मौजूदा भाजपा सरकार को लेकर जाट समुदाय में फैले गुस्से का फायदा उठाने की उम्मीद कर रही है तो उसके लिए कुमारी शैलजा और महत्वपूर्ण हो जाती हैं. राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा भी जाट समेत तमाम समुदायों के बीच अपने समर्थन को मजबूत करने का प्रयास कर रही है. इस बीच कांग्रेस जाट के अलावा दलित समुदाय का समर्थन हासिल करने पर फोकस कर रही है. कुमारी शैलजा कांग्रेस को दलित वोट दिलाने में मदद कर सकती हैं.

हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा का बढ़ा दबदबा, शैलजा की अनदेखी

इसके अलावा कुमारी शैलजा को गांधी परिवार के करीबी और भरोसेमंद के रूप में भी जाना जाता है. साल 2019 में जब उन्हें पीसीसी अध्यक्ष बनाया गया था, तो यह माना जाता था कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी चाहते थे कि राज्य इकाई में हुड्डा के प्रभुत्व का प्रतिकार किया जाए. हालांकि, इस बार राहुल गांधी के चाहने के बावजूद हरियाणा में कांग्रेस का आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं हो पाया था. इसे हुड्डा का बढ़े हुए प्रभाव के तौर पर देखा गया. हरियाणा में कांग्रेस के टिकट बंटवारे में भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा कैंप की ज्यादा चली.

13 सितंबर के बाद क्षेत्र या सोशल मीडिया पर जीरो एक्टिविटी

रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा सांसद कुमारी शैलजा पहले खुद विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती थी. लेकिन आलाकमान ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया. उनकी मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने की इच्छा के साथ भी सम्मानजनक तरीके से डील नहीं हो सका. इस सबसे नाराज बताई जा रही कुमारी शैलजा ने 13 सितंबर को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट किया था. इसके बाद से न ही वे हरियाणा चुनाव के प्रचार अभियान में शामिल हुई हैं और न ही सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं.

हरियाणा में कांग्रेस को भारी पड़ सकती है शैलजा की नाराजगी 

लोकसभा चुनाव के दौरान हरियाणा में बड़े पैमाने पर दलित वोट पाने वाली कांग्रेस के लिए शैलजा की नाराजगी भारी पड़ सकती है. क्योंकि हरियाणा में दलित वोटों में सेंधमारी के लिये आईएनएलडी का बीएसपी से गठबंधन है और जेजेपी का आजाद समाज पार्टी से गठजोड़ है. यह सब देखते हुए कांग्रेस डैमेज कंट्रोल के मोड में आ गई. कांग्रेस सांसद जय प्रकाश के कुमारी शैलजा को लेकर लिपिस्टिक वाले विवादित बयान पर भूपेंद्र हुड्डा ने दो दिन बाद सफाई दी और उन्हें अपनी बहन तक कहा. कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने भी कुमारी शैलजा को कांग्रेस की समर्पित सिपाही बताया.

हरियाणा में जाट के बाद सबसे ज्यादा 21 फीसदी दलित वोटर 

हरियाणा की आबादी में जाट के बाद सबसे ज्यादा दलित वोटर करीब 21 फीसदी हैं. राज्य में 17 सीटें दलितों के लिए रिजर्व हैं. साथ ही कुल 90 सीटों में से 35 सीटों पर दलित मतदाताओं का प्रभाव काफी ज्यादा है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को 68 फीसदी दलित वोट मिले थे. जबकि, भाजपा को लोकसभा में महज 24 फीसदी दलित वोट मिले थे. हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए 5 अक्टूबर को मतदान और 8 अक्टूबर को मतगणना होगी.

 

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