निर्जला एकादशी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, तभी मिलेगा पूजा का पूरा फल

निर्जला एकादशी साल की सबसे बड़ी एकादशी होती है, क्‍योंकि यह एक व्रत करने से 24 एकादशी व्रत करने जितना फल मिलता है. यहां पढ़ें एकादशी की व्रत कथा.

आज की एकादशी व्रत कथा: हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी को सबसे महत्‍वपूर्ण माना गया है. निर्जला एकादशी व्रत करने से मोक्ष मिलता है. सालभर में 24 एकादशी आती हैं, इसमें निर्जला एकादशी को सबसे बड़ी एकादशी कहा जाता है. निर्जला एकादशी व्रत ज्‍येष्‍ठ मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है और इसमें अन्‍न व जल ग्रहण नहीं किया जाता है. जेठ के महीने की तीखी गर्मी में बिना अन्‍न-जल के रहना बहुत मुश्किल होता है इसलिए निर्जला एकादशी को सबसे कठिन और महत्‍वपूर्ण व्रत माना गया है. निर्जला एकादशी व्रत का फल पाने के लिए जरूरी है कि विधि-विधान से भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी की पूजा करें, साथ ही एकादशी व्रत की कथा जरूर पढ़ें.

निर्जला एकादशी व्रत कथा

धर्म शास्‍त्रों के अनुसार जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था. तब भीमसेन बोले- पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूं. मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर सभी एकादशी के उपवास मैं कैसे सह पाऊंगा. मैं पूरे सालभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूं. लिहाजा मुझे एक ऐसा व्रत बताएं, जिसे करने से स्वर्ग की प्राप्ति हो. तब व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो. केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है.

यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होगा. इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे. इस प्रकार सारा कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें. इससे वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य प्राप्त कर लेता है. जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुंचा दिया है.

साथ ही जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता है या उसका वर्णन करता है, वह भी स्वर्गलोक में जाता है. यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया. इसलिए निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.

 

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