कुकिंग ऑयल के धुएं से पर्यावरण को हो रहा बड़ा नुकसान!
किचन में खाना बनाते समय हर डिश में तेल का इस्तेमाल होता है. जब गर्म कड़ाही में तेल डाला जाता है और उसमें सब्जियां या अन्य सामग्री डाली जाती हैं, तो तेल का धुआं और छोटे-छोटे कण हवा में घुल जाते हैं.
किचन में खाना बनाते समय हर डिश में तेल का इस्तेमाल होता है. जब गर्म कड़ाही में तेल डाला जाता है और उसमें सब्जियां या अन्य सामग्री डाली जाती हैं, तो तेल का धुआं और छोटे-छोटे कण हवा में घुल जाते हैं. हालांकि, हम यह मानते हैं कि चिमनी या एग्जॉस्ट फैन इन कणों को बाहर निकाल देता है, लेकिन हालिया रिसर्च के नतीजे यह साबित करते हैं कि ये कण सिर्फ गायब नहीं होते. ये कण लंबे समय तक वातावरण में रहते हैं और हवा की क्वालिटी, जलवायु, और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकते हैं.
एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री एंड फिजिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, कुकिंग ऑयल से निकलने वाले धुएं के कण (एरोसोल) वातावरण में लंबे समय तक टिके रह सकते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम द्वारा किए गए इस शोध में पाया गया कि कुकिंग ऑयल से बने एरोसोल कण कॉम्प्लेक्स नैनोस्ट्रक्चर में बदल जाते हैं. ये स्ट्रक्चर पानी को ज्यादा मात्रा में सोख सकती हैं, जिससे ये भारी हो जाते हैं और बारिश के माध्यम से वातावरण से हटते हैं.
कैसे बनते हैं ये स्ट्रक्चर?
शोधकर्ताओं ने ओलिक एसिड नामक एक फैटी एसिड का अध्ययन किया, जो कुकिंग ऑयल के धुएं में पाया जाता है. स्मॉल एंगल एक्स-रे स्कैटरिंग (SAXS) तकनीक का उपयोग करके यह पाया गया कि जैसे-जैसे ये कण ओजोन के संपर्क में आते हैं, वे टूटकर जटिल 3D स्ट्रक्चर बना लेते हैं. ये स्ट्रक्चर अलग-अलग क्षमता के साथ पानी को सोखने और अन्य रसायनों के साथ प्रतिक्रिया करने में सक्षम होती हैं.
क्या है इसका असर?
इन संरचनाओं के कारण कण वातावरण में ज्यादा समय तक टिके रहते हैं और वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं. ये कण न केवल वायु क्वालिटी को खराब करते हैं बल्कि जलवायु परिवर्तन में भी योगदान देते हैं. अध्ययन के अनुसार, ये कण बादलों के निर्माण और शहरी प्रदूषण पर भी असर डाल सकते हैं.
कैसे करें बचाव?
शोधकर्ताओं का सुझाव है कि खाना बनाते समय एग्जॉस्ट फैन का उपयोग करना और किचन को अच्छी तरह से वेंटिलेटेड रखना बेहद जरूरी है ताकि ये कण तेजी से बाहर निकल सकें. यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के प्रोफेसर क्रिश्चियन प्फ्रांग का कहना है, “हम जैसे-जैसे इन कणों के व्यवहार को बेहतर तरीके से समझेंगे, वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने की नई और अधिक प्रभावी रणनीतियां विकसित कर पाएंगे.”