SC के नोटिस के बाद असदुद्दीन ओवैसी और असदुद्दीन ओवैसी भी हुए एक्टिव

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से इस मामले पर जवाब तलब कर लिया है. दूसरी तरफ विपक्ष भी शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग की तैयारी है. इसके लिए सांसदों को समर्थन जुटाया जा रहा है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के ज़रिए हाल ही में दिए गए विवादित बयान को लेकर सियासत गरमा गई है. सुप्रीम कोर्ट ने भी मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के विवादित भाषण पर संज्ञान लिया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि देश ‘बहुसंख्यक’ की इच्छा के मुताबिक काम करेगा और उन्होंने कट्टर मौलवियों के लिए एक शब्द का इस्तेमाल किया, जिसे कई लोग अपमानजनक मानते हैं. उनके बयानों के असंवैधानिक होने और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ़ टार्गेट होने के विरोध के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से रिपोर्ट भी मांगी.

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने हाई कोर्ट से भाषण के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जारी एक संक्षिप्त बयान में कहा गया है,’अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के ज़रिए दिए गए भाषण की समाचार पत्रों में छपी खबरों पर ध्यान दिया है. हाई कोर्ट से विवरण और ब्यौरे मंगवाए गए हैं तथा मामला विचाराधीन है.’

NGO ने भी सुप्रीम कोर्ट में की शिकायत

इसके अलावा एनजीओ कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स, जिसके संरक्षक सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी बी सावंत हैं, ने जज के खिलाफ चीफ जस्टिस खन्ना के सामने शिकायत दर्ज कराई. इस शिकायत में जज के खिलाफ जांच और उनके न्यायिक कार्य को निलंबित करने की मांग की गई. इसमें कहा गया है कि उनके भाषण से न्यायपालिका की आजादी संदेह पैदा होता है. सीजेआई को भेजी गई अपनी शिकायत में सीजेएआर ने कहा,’हाईकोर्ट के एक कार्यरत न्यायाधीश के ज़रिए सार्वजनिक समारोह में दिए गए इस तरह के सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ बयानों से न सिर्फ धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं, बल्कि न्यायिक संस्था की अखंडता और निष्पक्षता में आम जनता का विश्वास भी पूरी तरह खत्म हो गया है. इस तरह का भाषण जज के रूप में उनकी शपथ का भी खुला उल्लंघन है, जिसमें उन्होंने संविधान और उसके मूल्यों को निष्पक्षता से बनाए रखने का वादा किया था.’

कबिल सिब्बल ने मोदी-शाह का समर्थन मांगा

दूसरी तरफ सीनियर वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने हाई कोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग चलाने की अपील की. कपिल सिब्बल ने महाभियोग प्रक्रिया का समर्थन करने के लिए प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और भाजपा सांसदों से समर्थन मांगा.

पद से हटाने के लिए चली मुहिम

श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के लोकसभा सांसद आगा सैयद रोहुल्लाह मेहदी ने महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस पेश करने की योजना बना रहे हैं. मेहदी ने कहा कि उन्हें कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डीएमके और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों से समर्थन का आश्वासन मिला है. मेहदी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा,’मैं जस्टिस शेखर के यादव, माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान जज को नोटिस में उल्लिखित आरोपों की बुनियाद पर हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के मुताबिक संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश कर रहा हूं.’

ओवैसी ने भी किए दस्तखत

एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी दस्तखत किए हैं. शेखर यादव को हटाने की मांग वाले एक नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं. ओवैसी ने आरोप लगाया कि जज का व्यवहार सुप्रीम कोर्ट के ‘न्यायिक जीवन के मूल्यों के पुनर्कथन’ समेत संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा कि जज के खिलाफ प्रक्रिया (हटाने की कार्यवाही) नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी द्वारा शुरू की गई. हैदराबाद के सांसद ने ‘एक्स’ पर लिखा,’मैंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शेखर यादव के खिलाफ उन्हें हटाने की कार्यवाही की मांग करने वाले नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं. यह प्रक्रिया रुहुल्लाह मेहदी द्वारा शुरू की गई थी. नोटिस पर 100 लोकसभा सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता है ताकि लोकसभा अध्यक्ष इस पर विचार कर सकें.’

क्या कहा था जस्टिस शेखर कुमार यादव ने?

अपने भाषण में जस्टिस यादव ने कथित तौर पर कहा कि हिंदुओं के बच्चों को हमेशा दयालु और अहिंसक होने की शिक्षा दी जाती है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में ऐसा नहीं है. इसके अलावा उन्होंने यूसीसी का समर्थन करते हुए कहा कि जब एक देश और एक संविधान है, तो सभी नागरिकों के लिए एक कानून क्यों नहीं होना चाहिए. इसके बाद जस्टिस यादव ने कहा,’मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है, यह देश हिंदुस्तान में रहने वाले ‘बहुसंख्यक’ की इच्छा के मुताबिक काम करेगा. यह कानून है… आप यह नहीं कह सकते कि आप हाईकोर्ट के जज होने के नाते ऐसा कह रहे हैं. कानून बहुमत के हिसाब से काम करता है, परिवार या समाज के कामकाज को देखें, यह बहुमत ही तय करता है.’

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