आखिरकार चिराग पासवान को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या आपत्ति है?

चिराग पासवान में एससी-एसटी आरक्षण क्रीमी लेयर (SC ST Sub Classification Orde) यानी कोटे में कोटे वाली बात के विरोध में लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. हालांकि चिराग जिस दल के साथ सत्ता सुख भोग रहे हैं, उसके नेता संयमित बयान दे रहे हैं, अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या कोई अलग लाइन ले सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी आरक्षण पर फैसला  : भारत की राजनीति में आरक्षण मृत संजीवनी विद्या से निकली वह आक्सीजन है, जिससे जनाधार खो चुकी पार्टियां वेंटिलेटर से बाहर आ जाती हैं. खासकर चुनाव के समय हर बात आखिर में जाति-धर्म और आरक्षण पर ही आ जाती है. वोटों की फसल लहलहाती है, सीटें बढ़ जाती हैं. सारा खेल नंबर का है, वो मिल जाते हैं तो बाकी चीजें बेमानी हो जाती हैं. भारत में आरक्षण व्यवस्था की शुरुआत से लेकर सुप्रीम कोर्ट की कोटे में कोटे वाली व्यवस्था की चर्चा तक, कई बार कहा जा चुका है कि पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण का लाभ ले चुके परिवारों का ही दबदबा है. इस वजह से SC-ST वर्ग से आने वालों को ही  आरक्षण का सही लाभ नहीं मिल पा रहा.

कोटे में कोटे की व्यवस्था से जुड़े आदेश पर केंद्र सरकार की अगुवाई कर रही बीजेपी के नेता या तो चुप हैं या संयमित बयान दे रहे हैं. वहीं बिहार में एनडीए की दूसरी बड़ी सहयोगी पार्टी लोजपा (रामविलास) इस बात से खुश नहीं है. खासकर केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान लगातार मुखर होकर कोर्ट की बात से असहमति जता रहे हैं. बीते रविवार को एक बार फिर चिराग ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के बीच क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से असहमति जताते हुए ऐलान किया कि उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करेगी.
चिराग क्यों कर रहे कोटे में कोटा का विरोध?
दरअसल चिराग सुप्रीम कोर्ट के क्रीमी लेयर वाले फैसले के खिलाफ इसलिए मुखर हैं कि उनकी खुद की पार्टी एलजेपी और उन्हें लोकसभा चुनावों में अपने दिवंगत पिता राम विलास पासवान के गृह क्षेत्र हाजीपुर से चुनाव जीता. उनका विक्ट्री फैक्टर भी जाति और आरक्षण से जुड़ा है. चिराग पासवान की पार्टी को एक बड़े दलित वोट के आधार से ताकत मिलती है. कास्ट पावर की वजह से उनकी पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में फर्स्ट डिवीजन से पास हुई.

लोकतंत्र में अगर जनता, जनार्दन है, तो चुनाव में जाति और आरक्षण ही वो दो अस्त्र है, जिससे किसी भी दूसरे मुद्दे की काट निकाली जा सकती है. इन बातों को आंकड़ों की मदद से समझें तो ‘बिहार जाति सर्वेक्षण’ के मुताबिक, बिहार में एससी और एसटी मिलकर राज्य की कुल आबादी का 21.3% हैं, जो उनके राजनीतिक महत्व को दर्शाती है. साफ है अगर वो इस मुद्दे को हाथ से जाने देंगे तो बात उनके हाथ से निकल सकती है. यही वजह है कि चिराग आज भी पुराने जमाने की बातों का हवाला देकर आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था को छूने का विरोध कर रहे हैं.

उन्होंने साफ कर दिया है कि आज भी समाज में भेदभाव होता है, दलित समुदाय को आरक्षण देने का आधार ‘अस्पृश्यता’ है और इसलिए SC-ST कोटे में ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा लागू नहीं होनी चाहिए. चिराग खुलकर कहते हैं कि वो सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से असहमत हैं. उन्होंने कहा, ‘हम स्पष्ट हैं कि अनुसूचित जाति के वर्गीकरण का आधार अस्पृश्यता है, न कि शैक्षणिक या आर्थिक स्थिति. इसलिए, SC-ST में क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं हो सकता… आरक्षण के भीतर आरक्षण उचित नहीं है. इसलिए हमारी पार्टी जल्द ही SC में एक समीक्षा याचिका दायर करेगी.

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