लखीमपुर खीरीः सपा-बसपा की घेराबंदी से भाजपा के लिए हैट्रिक लगाना बड़ी चुनौती

लखनऊ/लखीमपुर खीरी(उ.प्र.): केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी भाजपा के टिकट पर फिर मैदान में हैं। उनके लिए हैट्रिक लगाना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि तिकुनिया कांड में चार किसानों की मौत का मामला उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है। सपा ने पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा और बसपा ने पंजाबी समाज के अंशय कालरा को उतारकर अजय मिश्र की तगड़ी घेराबंदी की है।

यूपी की राजधानी लखनऊ से 130 किलोमीटर दूर घाघरा से गोमती तक लखीमपुर-खीरी की जमीन सोना उगलती है। यह इलाका किसानों का गढ है और यहां से केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी भाजपा के टिकट पर फिर मैदान में हैं। उनके लिए हैट्रिक लगाना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि तिकुनिया कांड में चार किसानों की मौत का मामला उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है। विपक्षी गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में है। सपा ने पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा और बसपा ने पंजाबी समाज के अंशय कालरा को उतारकर अजय मिश्र की तगड़ी घेराबंदी की है।

अजय मिश्रा को दूसरी बार जीतने का इनाम मिला। उनको केंद्रीय गृह राज्यमंत्री बना दिया गया। वह अपनी जनसभाओं में मोदी-योगी का गुणगान करते हैं। मोदी-योगी के नाम पर वोट मांगते हैं। वह लोगों के बीच राम मंदिर व धारा 370 की बात भी करते हैं और कहते हैं कि यह मोदी सरकार के कारण संभव हो पाया है।

सपा ने इंडी गठबंधन से पहले ही यह सीट अपने खाते में डाल ली थी। दो बार के विधायक रहे उत्कर्ष वर्मा को टिकट दे दिया। बहरहाल कांग्रेस ने गठबंधन के बाद इस सीट को सपा के खाते में डाल दिया। गठबंधन महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक के साथ ही गन्ना किसानों के मुद्दों पर हमलावर है। बसपा के अंशय कालरा किसानों-गरीबों और युवाओं की नब्ज पर हाथ रखने की कोशिश कर रहे हैं।

खीरी की सियासत में वर्मा परिवार का दबदबा रहा है। 1980 में बालगोविंद ने कांग्रेस की झोली में सीट डालकर चैथी बार जीत दिलाई थी। उनके निधन के बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी ऊषा वर्मा जीतीं। 1984 और 1989 में भी ऊषा वर्मा ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली। 1991 और 96 में गेंदालाल कन्नौजिया ने यहां भगवा परचम फहराया। 1998 में सपा ने ऊषा के बेटे रविप्रकाश वर्मा को टिकट दिया और खीरी में पहली बार साइकिल दौड़ी। उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई। पिछले चुनाव में उनकी बेटी पूर्वी सपा से मैदान में उतरीं, लेकिन हार गईं। इस बार वर्मा परिवार का कोई चुनाव मैदान में नहीं है, पर सबकी नजर उनके परिवार के रुख पर है।

आमजनों में उठते सवाल?:- यहां मजदूरों को महज 300 रुपये दिहाड़ी मिलती है। ऐसे में वह कैसे गुजारा करेगा? महंगाई की मार से जनता त्रस्त है। 25 गांवों में एक भी हाईस्कूल नहीं है। यहां बच्चे तीन किलो मीटर पैदल जाते है, वह भी निजी स्कूल में पढ़ने के लिए। किसान को फसल बेचने के लिए कमीशन देना पड़ता है कीटनाशक ब्लैक में मिलता है।

यहां बेशक धर्म व जाति की ही बात होती है। इसको लेकर लोग वोट भी देते हैं पर, यह भी सच है कि पंचपेड़ी घाट के जिस पुल की नींव का पत्थर मुलायम सिंह ने रखा था, आज तक नहीं बन पाया। अगर पुल बन जाए तो हमें 30 किमी. का चक्कर न लगाना पड़े।

विकास-बेरोजगारी और महंगाई पर सवाल?
गांव सिशौरा में करीब 250 घर है। यहां तो योगी ने विकास किया है। गांव के दवाखाने में हर दवा मिलती है, वह भी मुफ्त। हां, बेरोजगारी और महंगाई को लेकर जरूर सवाल हैं।

उत्कर्ष वर्मा, सपा
उत्कर्ष वर्मा सपा-कांग्रेस के परंपरागत वोटरों के साथ ही किसानों को साधने में जुटे हैं। कांग्रेस व सपा मिलकर मैदान में दम भर रहे हैं ,लेकिन दोनों तरफ गुटबाजी काफी अधिक है।

अंशय कालरा, बसपा
बसपा ने कौशांबी निवासी अंशय को पहले गाजियाबाद के मैदान में उतारा था। हालांकि टिकट बदलकर उन्हें लखीमपुर खीरी भेज दिया। अंशय पंजाबी समाज से हैं। खीरी के समीकरणों में पंजाबी समाज का काफी वोट है।

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