1948 की चूक से पनपा भारत में आतंकवाद!

अब पाक से निटने को भारत को बनानी होगी ठोस नीति

1948 में भारत के विभाजन और जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद पनपा आतंकवाद भारत में एक गंभीर समस्या रही है। 1948 की चूक से, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर में, कई कारकों ने आतंकवाद के पनपने में योगदान दिया, जिसमें पाकिस्तानी सेना और जनजातीय मिलिशिया का हस्तक्षेप, राज्य के विभाजन से उत्पन्न तनाव, और भारत सरकार की गलत नीतियों शामिल हैं।

आज देश को आजाद हुए 70 साल हो चुके हैं। आजादी के साथ ही भारत को देश के बंटवारे के रूप में जो जख्म मिला था वह रह-रह कर टीस मारता रहता है। भारत के जिस हिस्से को अलग करके पाकिस्तान बनाया गया था, वहीं से भारत को बार-बार जख्म दिए जाते हैं। कभी यह जख्म 1948, 1965, 1972 और 1999 की जंग के रूप में सामने आते हैं तो कभी आतंकवादियों के जरिए नरसंहार करके पाकिस्तान भारत की आत्मा को छलनी करने की कोशिश करता है। हालांकि आमने-सामने के युद्ध में उसे हमेशा ही मुंह की खानी पड़ी है, शायद इसीलिए पाकिस्तान की धरती से बार-बार आतंकवादी भेजकर मासूमों का खून बहाया जाता है।

पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले ने 6 बरसों की मेहनत पर ब्रेक लगा दिया है। यह हमला घाटी में आतंकवाद से लड़ रहीं तमाम एजेंसियों की बहुत बड़ी चूक माना जा रहा है। कश्मीर में विदेशी आतंकियों मौजूदगी कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार हैरान करने वाला है- आतंकवादी एक टूरिस्ट जगह तक पहुंचे, हमला किया और फिर बिना दिक्कत के वहां से भाग निकले। संकेत मिले हैं कि ये आतंकी पिछले साल जम्मू के पुंछ इलाके से घाटी में दाखिल हुए हो सकते हैं। ये पहले भी कुछ बड़े हमलों में शामिल रह चुके हैं, जैसे कि मई 2023 में भारतीय वायुसेना के काफिले पर हमला। हमने कई आतंकी हमलों को रोका है, लेकिन ऐसा एक बड़ा हमला पूरी कहानी बदल सकता है ।

साल 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक के जरिये दुश्मन को जवाब देने का प्रयास किया था। तब भारत ने एक नया मापदंड तय किया था कि हम अब चुप नहीं बैठेंगे। लेकिन, पहलगाम में हुई आतंकी वारदात से साफ है कि हमें उस मापदंड के आगे जाना होगा। इस बार हम सर्जिकल स्ट्राइक की अदृश्यता के पीछे छुप नहीं सकते । इस बार हमारा जवाब निर्णायक और बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए। पाकिस्तानी सेना की बिल्कुल जड़ पर प्रहार करने की जरूरत है।

कश्मीर या किसी और जगह यह हमारा आखिरी अपमान नहीं है। वजह कि हम आज भी अपनी ही जमीन पर जंग लड़ रहे हैं। दशकों से सैन्य रणनीतिकार इस बात पर अफसोस जताते आ रहे हैं कि भारत के पास कोई साफ-सुथरी रणनीति नहीं है । हम अगले 5 या 10 बरसों में क्या हासिल करना चाहते हैं? कब तक हम ऐसे मानसिक आघात सहते रहेंगे और इसे सहनशक्ति का नाम देकर खुद को दिलासा देते रहेंगे? कश्मीर में हमें जंग को सीमा पार ले जाना होगा ।

कोई भी पहलगाम में हुए हमले के प्रतीकात्मक महत्व को नजरअंदाज न करे । पहलगाम नाम सुनते ही कश्मीर की खूबसूरत वादियों की तस्वीर जेहन में आ जाती है। यह अमरनाथ यात्रा का बेस कैंप है। दो महीने बाद यह पवित्र यात्रा शुरू होनी है । पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर ने 16 अप्रैल को हिंदू विरोधी बयान दिया था और उसके बाद ही यह हमला हुआ । उन्होंने दो राष्ट्र की थिअरी को सही ठहराया था। ऐसे में भारत को पहलगाम का ऐसा जवाब देना चाहिए, जो सभी को दिखे।

पाकिस्तान पर एक्शन के साथ, हमें अपनी आंतरिक स्थिति पर भी दोबारा विचार करने की जरूरत है। नई दिल्ली की तमाम कोशिशों के बावजूद पंजाब – जम्मू सीमा पर पाकिस्तान से घुसपैठ की घटनाएं अब भी होती रहती हैं। एक तरफ हम गर्व से कह रहे हैं कि कश्मीर में सैलानियों की भारी आमद माहौल के सामान्य होने का संकेत है, वहीं हम इस बात की इजाजत दे रहे हैं कि कश्मीर से चुने गए सांसद पर्यटकों के आने को सांस्कृतिक आक्रमण बताएं ।

कश्मीर के नेताओं का दोहरा रवैया घाटी को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। लेकिन सबसे पहले, पहलगाम हमले का जवाब देना जरूरी है। एक आतंकी ने एक असहाय महिला के पति को मारने के बाद तंज किया था, ‘मोदी को बता देना’। भारत का जवाब ऐसा होना चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री ने सुन लिया है।

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