इस देश में है दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर

भारत मंदिरों का देश तो है लेकिन क्या आप जानते हैं कि विश्व का सबसे बड़ा मंदिर भारत में नहीं बल्कि विदेश में है. जिसकी दीवारों पर रामायण और महाभारत की कहानियां दर्ज हैं. आइए इस भव्य और बड़े मंदिर के बारे में विस्तार से जानें.

भारत मंदिरों का देश है, अनेक अनेक मंदिर बड़ी ही भव्यता के साथ अपनी आभा बिखेर रहे हैं. यहां छोटे-बड़े लाखों मंदिर हैं जिनकी गिनती पूरी नहीं हो सकती है लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर भारत में नहीं है. जी हां दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर कंबोडिया में स्थित है जिसका नाम अंकोरवाट है. भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में दर्शन के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. यहां की शोभा इतनी भव्य है कि देखते ही देखते लोग मंत्रमुग्ध होने लगते हैं. ऐसी मान्यता है कि फ्रांस से जब कंबोडिया को आजादी मिली तो यहां की सबसे बड़ी पहचान अंकोरवाट मंदिर बना जिसकी तस्वीर कंबोडिया के राष्टीय ध्वज पर दर्ज किया गया है.

गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में है दर्ज
अंकोरवाट मंदिर यशोधरपुर के नाम से भी प्रसिद्ध है. जोकि 402 एकड़ जमीन में बड़ी ही भव्यता के साथ खड़ा है. मंदिर बनाने में लाखों रेत के पत्थर उपयोग में लाए गए और यहां लगे एक पत्थर का वजन डेढ़ टन बताया जाता है. इन्हीं हैरान करने वाली रचना के कारण अंकोरवाट मंदिर को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी जगह दी गई है.

अंकोरवाट मंदिर का इतिहास
भगवान विष्णु को समर्पित यह अंकोरवाट मंदिर मिकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में स्थित है जिसे सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल में बनवाया गया. मंदिर को इसकी भव्यता के लिए जाना जाता है. ध्यान दे कि 1992 में यूनेस्को ने मंदिर को विश्व विरासत में भी शामिल कर लिया था.

मंदिर की दीवारों पर है रामायण और महाभारत के प्रसंग
इस विशाल अंकोरवाट मंदिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत के प्रसंग को चित्रित किया गया है जिसमें अप्सराओं का भी सुंदर तरीके से चित्रण है. इस मंदिर में असुर और देवताओं के बीच के संग्राम के बाद हुए समुद्र मंथन को भी दर्शाया गया है. वास्तु शास्त्र के अद्भुत सौंदर्य को दर्शाने वाले इस अंकोरवाट मंदिर को देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पर आते हैं. मंदिर में की गई कलाकारी भारतीय गुप्त कला से प्रभावित जान पड़ती है. यहां तोरण द्वार और अलंकृति शिखर भी देखने को मिलते हैं.

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