पुरुष नागा साधुओं की तरह महिला नागा साधु भी सांसारिकता से दूर एक संन्यासी होती हैं. गृहस्थ जीवन को त्यागकर वे केवल ईश्वर आराधना में रमी रहती हैं. उनके लिए रिश्ते-नाते, मोह-माया, पैसा-संपत्ति का कोई अर्थ नहीं होता. वे तो केवल भगवान के ध्यान में अपना पूरा जीवन गुजार देती हैं.
नागा साधु बनने की प्रक्रिया क्या है?
किसी भी महिला के नागा साधु बनने की प्रक्रिया बड़ी कठिन होती है. इसके लिए वही महिलाएं पात्र होती हैं, जो अपने गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को पूरा कर चुकी हों या जिन्होंने गृहस्थी बसाई ही न हो. कई मामलों में गृहस्थी त्याग चुकी महिलाओं को भी नागा साधु बनने की दीक्षा दी जाती है. इसके लिए उन्हें 10 से 15 सालों तक ब्रह्मचर्य के कठिन व्रत का पालन करना पड़ता है. महिला को अपने गुरू और अखाड़े के रमता पंचों को भरोसा दिलाना पड़ता है कि वे स्वयं को ईश्वर आराधना में समर्पित कर चुकी हैं.
दीक्षा के बाद मिलता है नया नाम
जब पंचों को यह भरोसा हो जाता है कि वह अब गृहस्थ जीवन में दोबारा नहीं लौटेगी तो उसे नागा साधु बनाने की स्वीकृति दी जाती है. इसके तहत कुंभ के दौरान महिला साधु को अपने बाल मुंडवाकर स्वयं का पिंडदान करना पड़ता है. फिर उन्हें पवित्र नदी में स्नान कर प्रभु की स्तुति करवाई जाती है. संन्यासी से नागा साधु बनने की इस प्रक्रिया में करीब 10 से 15 साल का वक्त लग जाता है.
महिलाओं के नागा साधु बनने के बाद बाकी साधु-साध्वी उन्हें माई, माता, अवधूतानी या नागिन कहा जाता है. उनका दर्जा बाकी सब संन्यासिनों से ऊंचा होता है और उन्हें आश्रम व आम लोगों में बड़ी प्रतिष्ठा हासिल होती है. दीक्षा के बाद महिला नागा साधुओं को नया नाम भी मिलता है.
क्या खाती हैं महिला नागा साधु?
नागा साधु बनने के बाद महिलाएं प्रतिदिन कठोर साधना करती हैं. वे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान शिव का जप करती हैं और शाम में दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं. दोपहर के भोजन के बाद वे फिर भोलेनाथ के स्मरण में बैठ जाती हैं. यदि उनके प्रतिदिन की भोजन शैली की बात की जाए तो वे केवल शाकाहारी चीजें ही खा सकती हैं. इनमें कंदमूल, फल, फूल, पत्तियां और जड़ी-बूटी शामिल हैं. वे किसी भी तरह का तामसिक या चिकनाई-तला भुना भोजन नहीं कर सकतीं.
महिला नागा साधु कहां रहती हैं?
महिला नागा साधु किसी न किसी बड़े अखाड़े से जुड़ी होती हैं. हालांकि उनके रहने के अपने अलग आश्रम होते हैं, जहां पर वे बाकी महिला साध्वियों के साथ जीवन व्यतीत करते हैं. जब कुंभ मेला लगता है तो उनके रहने के लिए अखाड़े में अलग व्यवस्था की जाती है. पुरुष नागा साधुओं के कुंभ स्नान के बाद वे पवित्र नदी में उतरकर डुबकी लगाती हैं और पुण्य लाभ कमाती हैं.
क्या महिला नागा साधु भी निर्वस्त्र रहती हैं?
अखाड़ों के नियमों के अनुसार, पुरुष नागा दो तरह के वस्त्रधारी और दिगंबर (निर्वस्त्र) होते हैं. निर्वस्त्र रहने वाले साधु भी सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर मर्यादा का पालन करते हुए अपने निजी अंगों को ढंकते हैं. जबकि महिला नागा साधुओं को नग्न रहने की अनुमति नहीं होती. उन्हें बिना सिला हुआ गेरुआ रंग का एक कपड़ा पहनना होता है, जिसे गंती कहा जाता है. वे इसके अतिरिक्त अन्य वस्त्र धारण नहीं कर सकतीं. उन्हें अपने अपने माथे पर लंबा तिलक लगाना जरूरी होता है. कुंभ संपन्न होने के पश्चात वे वापस अपने आश्रमों को लौट जाती हैं.