क्या होता है मुनि, देव, मानव और राक्षस स्नान? जाने महाकुम्भ में स्नान के बारे में ये काम की बात

महाकुंभ में स्नान के लिए जा रहे है तो पहले जान लीजिए कि क्या होता है मुनि, देव, मानव और राक्षस स्नान.

सनातन धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन यानी महाकुंभ 13 जनवरी से तीर्थनगरी प्रयागराज में शुरू होने जा रहा है. 144 साल बाद दुर्लभ संयोग में वाले इस महाकुंभ का समापन 26 फरवरी 2025 को होगा. इस बार के महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने संगम पहुंचेंगे. महाकुंभ में स्नान का विशेष महत्व है. करते हैं कि महाकु्ंभ के शाही स्नान से जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में स्नान को लेकर खास विधान का जिक्र किया गया है. ऐसे में अगर आप भी महाकुंभ में स्नान की तैयारी कर रहे हैं तो पहले जान लीजिए क्या होता है मुनि, देव, मानव और राक्षस स्नान.

शास्त्रों में स्नान का क्या है विधान

शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना सबसे पवित्र माना गया है. यह आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का समय है. वहीं, सूर्यास्त के बाद स्नान निषिद्ध माना गया है. विशेष परिस्थितियों, जैसे अशौच (अशुद्धता) के बाद या किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए, सूर्यास्त के बाद स्नान किया जा सकता है. रात्रि में स्नान को अपवित्र समझा गया है और इसे केवल स्वास्थ्य कारणों या आवश्यक धार्मिक कृत्यों के लिए ही उचित माना गया है.

स्नान के लिए प्राकृतिक जल स्रोतों, जैसे नदियों, झीलों, तालाबों या कुंडों में स्नान करना अधिक पुण्यदायक है. यदि यह संभव न हो, तो स्वच्छ जल का उपयोग करना चाहिए. स्नान के दौरान साबुन और रसायनों का कम से कम उपयोग करने का सुझाव दिया गया है. भोजन से पहले स्नान करना आवश्यक माना गया है ताकि शरीर शुद्ध और पवित्र बना रहे.

स्नान की विधि

शास्त्रों में स्नान का विशेष तरीका बताया गया है. सबसे पहले नाभि पर पानी डालना चाहिए, फिर कंधे, छाती और पूरे शरीर पर जल अर्पण करना चाहिए. स्नान के दौरान मंत्रों का उच्चारण करना पुण्यदायक माना गया है. उदाहरण के लिए, संगम-गंगा स्नान के समय यह मंत्र पढ़ा जाता है-

“ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलस्मिन्सन्निधिं कुरु”

स्नान के प्रकार

शास्त्रों में स्नान के विभिन्न प्रकार बताए गए हैं:

मुनि स्नान- सुबह 4-5 बजे के बीच किया गया स्नान. इसे वैदिक स्नान भी कहा जाता है, जो मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है.
देव स्नान: सुबह 5-6 बजे के बीच. इसमें देवताओं और पवित्र नदियों का स्मरण कर स्नान किया जाता है.
मानव स्नान: सुबह 6-8 बजे के बीच किया गया स्नान.
राक्षस स्नान: सुबह 8 बजे के बाद का स्नान, जिसे सबसे निकृष्ट माना गया है.

स्नान का आध्यात्मिक महत्त्व

स्नान शरीर की अशुद्धियों को दूर कर मन और आत्मा को शुद्ध करता है. जल का स्पर्श मानसिक तनाव कम करता है और शांति प्रदान करता है. यदि पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा,संगम में स्नान किया जाए, तो शास्त्रों के अनुसार पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है. स्नान न केवल शारीरिक बल्कि आध्यात्मिक और मानसिक उन्नति का माध्यम है.

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