जस्टिस यादव की लगी ‘क्लास’
जस्टिस यादव को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ के सामने उपस्थित होना पड़ा. उन्होंने अपने भाषण का मकसद और संदर्भ समझाने की कोशिश की और मीडिया पर आरोप लगाया कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया.
हेट स्पीच मामले में आखिरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की क्लास लग गई है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने उन्हें विवादित बयान देने के लिए कड़ी फटकार लगाई है. हुआ यह था कि जस्टिस यादव ने 8 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में ऐसा भाषण दिया, जिसे लेकर राजनीतिक और कानूनी हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं. फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 10 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट से उनके भाषण की पूरी जानकारी और विवरण मांगे थे.
‘गरिमा बनाए रखने की सलाह’
अब इसी मामले में मंगलवार को जस्टिस यादव को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ के सामने उपस्थित होना पड़ा. उन्होंने अपने भाषण का मकसद और संदर्भ समझाने की कोशिश की और मीडिया पर आरोप लगाया कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पीठ उनके स्पष्टीकरण से असंतुष्ट रही और उन्हें सार्वजनिक मंचों पर बोलते समय अधिक सावधानी बरतने और न्यायिक पद की गरिमा बनाए रखने की सलाह दी.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया
रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों का आचरण, बयान और व्यवहार हमेशा जनता और मीडिया की नजरों में होता है. ऐसे में संवैधानिक पद पर रहते हुए, उनका हर शब्द न्यायपालिका की गरिमा के अनुरूप होना चाहिए. जस्टिस यादव ने अपने भाषण में समान नागरिक संहिता UCC का समर्थन किया और कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय पर टिप्पणी की, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ.
बयान से बवाल मच गया था
इसके बाद मामले में बवाल मच गया था. सीनियर वकील प्रशांत भूषण की एनजीओ ‘कमेटी फॉर जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स’ ने सुप्रीम कोर्ट से जस्टिस यादव के खिलाफ इन-हाउस जांच की मांग की. साथ ही विपक्ष के 55 सांसदों ने राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है. आरोप लगे थे कि यह मामला न्यायपालिका की तटस्थता और स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाता है.
‘अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए’
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यादव को यह सलाह दी कि उनके बयान और कार्य न्यायपालिका में जनता के विश्वास को प्रभावित कर सकते हैं. कोर्ट ने उन्हें याद दिलाया कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के जजों को अपने व्यवहार और बयानों में अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए, ताकि न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे और जनता का विश्वास अटूट रहे.